बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझ को
सोचता हूँ के कहूँ तुझ से मगर जाने दे
नज़ीर बाक़री
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
असर सहबाई
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
के तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी।
अहमद फ़राज़
इस से पहले के बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़