उस शख़्स के ग़म का कोई अंदाज़ा लगाए,
जिसको कभी रोते हुए देखा न किसी ने।
वकील अख़्तर
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है।
क़ैसर-उल जाफ़री
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उस शख़्स के ग़म का कोई अंदाज़ा लगाए,
जिसको कभी रोते हुए देखा न किसी ने।
वकील अख़्तर
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है।
क़ैसर-उल जाफ़री
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
बहादुर शाह ज़फ़र
हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
क़तील शिफ़ाई
हम ने उस को इतना देखा जितना देखा जा सकता था
लेकिन फिर भी दो आँखों से कितना देखा जा सकता था
वैसे तो सभी ने मुझे बदनाम किया है
तू भी कोई इल्ज़ाम लगाने के लिए आ
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
बशीर बद्र
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
अनवर शऊर
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
दाग़ देहलवी
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझ को
सोचता हूँ के कहूँ तुझ से मगर जाने दे
नज़ीर बाक़री
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
असर सहबाई
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
के तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी।
अहमद फ़राज़
इस से पहले के बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
मिर्ज़ा ग़ालिब
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
अनवर शऊर
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बशीर बद्र
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
राहत इंदौरी
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास...