अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
असर सहबाई
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जानता कौन है पराई चोट
फ़ानी बदायुनी
एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनी
दर्द बे-चारा परेशाँ है कहाँ से निकले
सय्यद हामिद