तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ
मैं दुश्मनों में हूँ कि तेरे दोस्तों में हूँ
ऐ यार-ए-ख़ुश-दयार तुझे क्या ख़बर कि मैं
कब से उदासियों के घने जंगलों में हूँ
बदला न मेरे बाद भी मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू
मैं जा चुका हूँ फिर भी तेरी महफ़िलों में हूँ
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर
ये सोच ले कि मैं भी तेरी ख़्वाहिशों में हूँ
तू हँस रहा है मुझ पे मिरा हाल देख कर
और फिर भी मैं शरीक तेरे क़हक़हों में हूँ