जो ख़ुद उदास हो वो क्या ख़ुशी लुटाएगा
बुझे दिये से दिया किस तरह जलाएगा
कमान ख़ुश है कि तीर उस का कामयाब रहा
मलाल भी है कि अब लौट के न आएगा
वो बंद कमरे के गमले का फूल है यारों
वो मौसमों का भला हाल क्या बताएगा
मैं जानता हूँ तेरे बाद मेरी आँखों में
बहुत दिनों तेरा एहसास झिलमिलाएगा
तुम उस को अपना समझ तो रहे हो 'नाज़' मगर
भरम भरम है किसी रोज़ टूट जाएगा
कृष्ण कुमार नाज़
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