Wednesday, May 8, 2024

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रात को दीप की लौ कम नहीं रक्खी जाती 

धुंध में रौशनी मद्धम नहीं रक्खी जाती 

कैसे दरिया की हिफ़ाज़त तेरे ज़िम्मे ठहराऊँ 

तुझ से इक आँख अगर नम नहीं रक्खी जाती 

ऐसे कैसे मैं तुझे चाहने लग जाऊँ भला 

घर की बुनियाद तो इक दम नहीं रक्खी जाती 

तहज़ीब हाफ़ी

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